कैमूर पहाड़ी पर रोहतास गढ़ किला स्थित
रोहितेश्वर धाम पर सवान पूर्णिमा के मौके
पर आस्था का सैलाब उमड़ता है। प्रति वर्ष यहां लगने वाले इस धार्मिक उत्सव पर बिहार-झारखंड के हजारों श्रद्धालु यहां
स्थापित प्राचीन शिव¨लग पर जलाभिषेक कर दर्शन-पूजन करेंगे। लगभग 15 सौ फीट की उंचाई पर अवस्थित इस मंदिर परिसर तक आने-जाने के दुर्गम मार्ग होते हुए भी सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है। जहां रुद्राभिषेक में
हजारों श्रद्धालु शामिल होकर बाबा भोलेनाथ को
अपनी श्रद्धा निवेदित करते हैं। मां पार्वती के मंदिर से 84 सीढ़ी उपर विराजमान होने के कारण यह
महादेव स्थान चौरासन मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है।
मान्यता है कि यहां सच्चे मन से पूजा करने पर मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
मंदिर की
प्राचीनता के बारे में हरिवंश पुराण में जिक्र है। जनश्रुतियों के अनुसार त्रेता युग में राजा हरिश्चन्द्र के
पुत्र रोहित ने रोहितपुर नगरी बसाकर यहां भगवान शंकर के
मंदिर का निर्माण करा शिव ¨लग की स्थापना की थी। इतिहासकार एन.एल.डे. ने भी अपने यात्रा
वृतांत में इस मंदिर की प्राचीनता का
जिक्र किया है। वहीं 625 ई. में बंगाल के राजा शैव भक्त शशांक देव
गौड़ द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार कराने का प्रमाण मिलता है। मंदिर निर्माण नागर शैली में होने के
कारण इसके 7वीं सदी में मरम्मती की प्रमाणिकता सिद्ध होती है।वर्तमान
स्थिति
मंदिर रोहतास गढ़
किले की परिधि में होने के कारण पुरातत्व विभाग के अधीन है । परंतु विभाग द्वारा मंदिर व आसपास किसी प्रकार का
निर्माण कार्य नहीं किया गया है। यहां नौहट्टा व रोहतास प्रखंड के ग्रामीणों के सहयोग से मंदिर में पूजा अर्चना व मेला का प्रबंध
किया जाता है।
रोहितेश्वर धाम
सेवा समिति के संरक्षक रघुवीर प्रसाद कहते हैं कि कई श्रद्धालु प्रत्येक सोमवार को सालों भर जलाभिषेक करते हैं।
मेला के समय घाट में पूजा समिति द्वारा श्रद्धालुओं की
सुख-सुविधा के लिए शरबत, पानी की व्यवस्था की जाती है। यहां की प्राकृतिक छटा भी अलौकिक है।