पवित्र माह सावन २०१५ के प्रथम दिन से ही माँ तारा चन्डी धाम में मेला का आयोजन किया गया, साथ हीं बाबा गुप्ता धाम में लगा कवरियों का भीड़
पौराणिक आख्यानों में
वर्णित भगवान शंकर
व भस्मासुर से
जुड़ी कथा को
जीवंत रखे ऐतिहासिक गुप्ताधाम गुप्तेश्वरनाथ महादेव
की मंदिर है।
बिहार विभाजन के
बाद देवघर के
झारखंड में चले
जाने के बाद
मात्र यही गुप्तेश्वर नाथ
अर्थात 'गुप्ताधाम' श्रद्धालुओं में
बैजनाथ धाम की
तरह लोकप्रिय है।
यहां बक्सर से
गंगाजल लेकर शिवलिंग पर
चढ़ाने की परंपरा
है। पूरे देश
से लाखों श्रद्धालु प्रतिवर्ष यहां
आते हैं। कैमूर की दुर्गम
घाटियों से होकर गुजरने
में दर्शनार्थियों को
काफी कठिनाइयों का
सामना करना पड़ता
है।
गुफा
में गहन अंधेरा
है, बिना कृत्रिम प्रकाश
के भीतर जाना
संभव नहीं है।
टार्च की रोशनी
में आगे जाने
पर एक सकरी
गुफा मिलती है।
जिसमें झुककर कुछ
दूर चलने के
बाद गुफा काफी
चौड़ी हो जाती
है। वहां पर
लगातार पानी टपकते
रहता है। मान्यता है
कि भगवान शंकर
की जटा से
गंगाजल टपकता है।
श्रद्धालु चातक की तरह
मुंह खोलकर जल
की बूंदे ग्रहण
करते हैं।
साल
में पांच बार
लगता मेला :
गुप्ताधाम में
साल में पांच
बार मेला लगता
है। बसंत पंचमी,
फाल्गुन, चैत व वैशाख
शिवरात्रि तथा सावन में
श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ा
है। लोगों का
मानना है कि
विख्यात उपन्यासकार देवकी नंदन खत्री
ने अपने चर्चित
उपन्यास चंद्रकांता में विंध्य पर्वत
श्रृंखला की जिन तिलस्मी गुफाओं
का जिक्र किया
है,
हर हर महादेव...... ओम शिव